नागबलि/नारायणबलि शास्त्रों में पितृदोष निवारण के लिए नारायणबलि व नागबलि कर्म करने का विधान है। जिस परिवार के किसी सदस्य या पूर्वज का ठीक प्रकार से अंतिम संस्कार, पिंडदान और तर्पण नहीं हुआ हो, उनकी आगामी पीढ़ियों में पितृदोष उत्पन्न होता है। ऐसे व्यक्तियों का संपूर्ण जीवन कष्टमय रहता है, जब तक कि पितरों के निमित्त नारायणबलि विधान न किया जाए। प्रेत योनि से होने वाली पीड़ा दूर करने के लिए नारायणबलि की जाती है। परिवार के किसी सदस्य की आकस्मिक मृत्यु हुई हो, आत्महत्या, पानी में डूबने से, आग में जलने से, दुर्घटना में मृत्यु होने से ऐसा दोष उत्पन्न होता है।
यह कर्म प्रत्येक वह व्यक्ति कर सकता है, जो अपने पितरों का आशीर्वाद प्राप्त करना चाहता है। जिन जातकों के माता-पिता जीवित हैं, वे भी यह विधान कर सकते हैं। संतान प्राप्ति, वंशवृद्धि, कर्जमुक्ति व कार्यों में आ रहीं बाधाओं के निवारण के लिए यह कर्म पत्नी सहित करना चाहिए। यदि पत्नी जीवित न हो तो कुल के उद्धार के लिए पत्नी के बिना भी यह कर्म किया जा सकता है। हमारे द्वारा वैदिक विधि से सम्पन्न किया जाता है|.
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