कालसर्प दोष शान्ति

जातक की कुंडली में राहु और केतु के बीच में बाकी सभी ग्रह स्थित हो तब कालसर्प दोष का निर्माण होता हैं।

कालसर्प दोष निवारण

कालसर्प दोष क्या हैं ?

कालसर्प दोष शान्ति पूजन व्यक्ति के जन्मांग चक्र में राहु और केतु की स्थिति आमने सामने की होती है। दोनों 180 डिग्री पर रहते हैं। यदि बाकी सात ग्रह राहु केतु के एक तरफ हो जाएं और दूसरी ओर कोई ग्रह न रहे, तो ऐसी स्थिति में कालसर्प योग बनता है। ग्रहों की राहु एवं केतु के बीच स्थिति अलग अलग हो सकती है और इन स्थितियों के अनुसार इस योग का जातक के जीवन में प्रभाव हो सकते है |

कालसर्प दोष के दुष्प्रभाव को दूर करने का एकमात्र उपाय कालसर्प शान्ति पूजा है। यह अनिवार्य है कि यह पूजा समय से की जाए। काल सर्प शांति पूजा एक बहुत ही सकारात्मक प्रभाव लाती है। यह कालसर्प दोष के भयानक परिणाम को कम करने में सहायता करती है। हमारे द्वारा वैदिक विधि से सम्पन्न किया जाता है|.

कालसर्प दोष के प्रकार

कालसर्प दोष 12 प्रकार के होते हैं

अनंत कालसर्प योग : यदि लग्न में राहु और सप्तम में केतु हो, तब यह योग बनता है। इस योग के कारण जातक कभी शांत नहीं रह पाता और षड़यंत्रों में फंस कर कोर्ट-कचहरी का चक्कर लगाता रहता है।
कुलिक कालसर्प योग : यदि राहु धन भाव में एवं केतु अष्टम में हो, तो यह योग बनता है, इस योग के कारण पुत्र एवं जीवन साथी सुख, पिता सुख का अभाव रहता है एवं कदम कदम पर अपमान सहना पड़ सकता है।
वासुकी कालसर्प योग : यदि कुंडली के तृतीय भाव में राहु एवं नवम भाव में केतु हो और इनके मध्य में सारे ग्रह हों, तो यह योग बनता है। इस योग में भाई-बहन को कष्ट, भाग्योदय में बाधा, नौकरी में कष्ट उठाने पड़ते हैं।
शंखपाल कालसर्प योग : यदि राहु नवम् भाव में एवं केतु तृतीय में हो, तब यह योग बनता है। इस योग के कारण पिता का सुख नहीं मिलता एवं नौकरी में परेशानी आती हैं।
पद्म कालसर्प योग : अगर पंचम भाव में राहु एवं एकादश भाव में केतु हो तो यह योग बनता है, इस योग से पीड़ित जातक को संतान सुख का अभाव रहता है, शत्रु बहुत होते हैं।
महापद्म कालसर्प योग : यदि राहु छठें भाव में एवं केतु व्यय भाव में हो तब यह योग बनता है। इस योग के कारण पत्नी कष्ट, आय में कमी, अपमान का कष्ट भोगना पड़ता है।
तक्षक कालसर्प योग : यदि राहु सप्तम में एवं केतु लग्न में हो तो तक्षक कालसर्प योग बनता है, ऐसे जातक की पैतृक संपत्ति नष्ट हो जाती है, बार-बार जेल यात्रा करनी पड़ती है।
कर्कोटक कालसर्प योग : यदि राहु अष्टम में एवं केतु धन भाव में हो, तो यह योग बनता है। इस योग में भाग्योदय नहीं हो पाता, नौकरी की संभावनाएं कम रहती हैं, व्यापार नहीं चलता।
शंखचूड़ कालसर्प योग : यदि राहु सुख भाव में एवं केतु कर्म भाव में हो, तो यह योग बनता है। ऐसे जातकों को व्यवसाय में उतार-चढ़ाव देखना पड़ता है।
घातक कालसर्प योग :यदि राहु दशम एवं केतु सुख भाव में हो तो घातक कालसर्प योग बनता है। ऐसे जातक संतान के रोग से परेशान रहते हैं।
विषधर कालसर्प योग : यदि राहु लाभ भाव में एवं केतु पुत्र भाव में हो तो यह योग बनता है, ऐसा जातक किसी न किसी कारण घर से दूर रहते हैं। हृदय रोग होता है।
शेषनाग कालसर्प योग : यदि राहु व्यय भाव में एवं केतु रोग भाव में हो, तो यह योग बनता है। ऐसे जातक शत्रुओं से पीड़ित रहते हैं और न्यायालय का चक्कर बार बार लगाना पड़ता है।

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